माँ दुर्गा के नौ रूपों की जानकारी, भारतीय संस्कृति में माँ दुर्गा की पूजा का विशेष महत्व है, खासकर नवरात्रि के दिनों में। यह पर्व शक्ति और भक्ति का एक अद्भुत संगम है, जो हमें बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश देता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, प्रति वर्ष चार नवरात्रि होती हैं, जिनमें से दो गुप्त नवरात्रि और दो सामान्य नवरात्रि होती हैं। चैत्र माह की नवरात्रि को “बड़ी नवरात्रि” और आश्विन माह की नवरात्रि को “छोटी” या “शारदीय नवरात्रि” कहा जाता है। आषाढ़ और माघ मास में गुप्त नवरात्रि आती है, जिसे कम लोग जानते हैं।
नवरात्रि के नौ दिनों में माँ दुर्गा के 9 रूपों की पूजा – अर्चना की जाती है, जिन्हें “नवदुर्गा” कहा जाता है। यह नौ रूप शक्ति, सौम्यता, और विनाशक शक्ति के प्रतीक हैं। यह नौ देवियाँ ब्रह्मांड की विभिन्न शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं और हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं में मार्गदर्शन करती हैं।
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यह पर्व सिर्फ धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व हमें नारी शक्ति के महत्व को समझने और उसका सम्मान करने की प्रेरणा देता है। यह हमें यह भी सिखाता है कि हमें हमेशा बुराई के खिलाफ खड़ा होना चाहिए और अच्छाई का साथ देना चाहिए।
Navratri के दौरान, भक्त माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं, उपवास रखते हैं, और भजन-कीर्तन करते हैं। यह नौ दिन भक्ति, श्रद्धा और उत्सव के होते हैं।
निश्चित रूप से, माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों की कथा और मंत्र सहित पूरी जानकारी इस प्रकार है:
शैलपुत्री – माँ दुर्गा के नौ रूपों की जानकारी –
माँ दुर्गा का प्रथम रूप, हिमालय पर्वत की पुत्री हैं। इनका वाहन वृषभ है, और ये अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल धारण करती हैं। शैलपुत्री प्रकृति की प्रतीक हैं और स्थिरता, दृढ़ता और शांति का प्रतिनिधित्व करती हैं। इनकी पूजा से मन शांत होता है और जीवन में स्थिरता आती है। ये हमें सिखाती हैं कि हमें अपने लक्ष्यों के प्रति दृढ़ रहना चाहिए और कभी हार नहीं माननी चाहिए।
कथा – Maa Durga का पहला रूप शैलपुत्री है, जो पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की पुत्री सती थीं। भगवान शिव से विवाह करने के बाद, दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन न कर पाने के कारण उन्होंने योगाग्नि में अपने प्राण त्याग दिए थे। अगले जन्म में उन्होंने हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और भगवान शिव से पुनः विवाह किया।
मंत्र – ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नमः
महत्व – यह रूप स्थिरता, दृढ़ता और शांति का प्रतीक है। इनकी पूजा से मन को शांति और स्थिरता मिलती है।
ब्रह्मचारिणी – माँ दुर्गा के नौ रूपों की जानकारी –
माँ दुर्गा का दूसरा रूप, तपस्या और त्याग की प्रतीक हैं। ये श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और इनके दाहिने हाथ में जप माला और बाएं हाथ में कमंडल होता है। ब्रह्मचारिणी हमें सिखाती हैं कि हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत और त्याग करना चाहिए। इनकी पूजा से एकाग्रता और धैर्य बढ़ता है।
कथा – माँ दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है, जो तपस्या और संयम का प्रतीक हैं। भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इन्होंने कठोर तपस्या की थी। इनकी तपस्या से तीनों लोक प्रभावित हुए थे।
मंत्र – ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नमः
महत्व – यह रूप तपस्या और संयम की प्रेरणा देता है। इनकी पूजा से मन को एकाग्रता और धैर्य मिलता है।
चंद्रघंटा – माँ दुर्गा के नौ रूपों की जानकारी –
माँ दुर्गा का तीसरा रूप, शांति और सौम्यता की प्रतीक हैं। इनके माथे पर अर्धचंद्र है, और ये दस भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। चंद्रघंटा हमें सिखाती हैं कि हमें हमेशा शांत और सौम्य रहना चाहिए, लेकिन जरूरत पड़ने पर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने से भी नहीं हिचकिचाना चाहिए। इनकी पूजा से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और मन को शांति मिलती है।
कथा – माँ दुर्गा का तीसरा रूप चंद्रघंटा है, जो शांति और सौम्यता का प्रतीक हैं। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। ये सिंह पर सवार हैं और इनकी दस भुजाएँ हैं।
मंत्र – ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चंद्रघंटायै नमः
महत्व – यह रूप मन को शांति और सुख प्रदान करता है। इनकी पूजा से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
कूष्मांडा – माँ दुर्गा के नौ रूपों की जानकारी –
माँ दुर्गा का चौथा रूप, ब्रह्मांड की रचनाकार हैं। ये आठ भुजाओं वाली हैं और इनका वाहन सिंह है। कूष्मांडा हमें सिखाती हैं कि हमें हमेशा सकारात्मक रहना चाहिए और अपनी रचनात्मकता का उपयोग करना चाहिए। इनकी पूजा से ऊर्जा और शक्ति मिलती है।
कथा – माँ दुर्गा का चौथा रूप कूष्मांडा है, जो ब्रह्मांड की रचनाकार हैं। अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली कूष्मांडा देवी की आठ भुजाएँ हैं और ये सिंह पर सवार हैं।
मंत्र – ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नमः
महत्व – यह रूप ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक है। इनकी पूजा से शारीरिक और मानसिक शक्ति मिलती है।
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स्कंदमाता –
माँ दुर्गा का पांचवां रूप, मातृत्व और प्रेम की प्रतीक हैं। ये अपने पुत्र स्कंद को गोद में लिए हुए हैं और चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। स्कंदमाता हमें सिखाती हैं कि हमें अपने बच्चों से प्यार करना चाहिए और उनका ध्यान रखना चाहिए। इनकी पूजा से परिवार में सुख और शांति बनी रहती है।
कथा – माँ दुर्गा का पाँचवा रूप स्कंदमाता है, जो मातृत्व और स्नेह का प्रतीक हैं। ये भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता हैं और सिंह पर सवार हैं।
मंत्र – ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नमः
महत्व – यह रूप मातृत्व और प्रेम का प्रतीक है। इनकी पूजा से परिवार में सुख और शांति बनी रहती है।
कात्यायनी –
माँ दुर्गा का छठा रूप, शक्ति और साहस की प्रतीक हैं। ये चार भुजाओं वाली हैं और इनका वाहन सिंह है। कात्यायनी हमें सिखाती हैं कि हमें हमेशा अन्याय के खिलाफ लड़ना चाहिए और अपनी शक्ति का उपयोग दूसरों की मदद करने के लिए करना चाहिए। इनकी पूजा से बुराई पर विजय मिलती है।
कथा – माँ दुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है, जो साहस और शक्ति का प्रतीक हैं। ऋषि कात्यायन की पुत्री होने के कारण इन्हें कात्यायनी कहा जाता है। इन्होंने महिषासुर का वध किया था।
मंत्र – ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायन्यै नमः
महत्व – यह रूप साहस और शक्ति प्रदान करता है। इनकी पूजा से बुराई पर विजय मिलती है।

कालरात्रि –
माँ दुर्गा का सातवां रूप, विनाशक शक्ति की प्रतीक हैं। ये काले रंग की हैं और इनके बाल बिखरे हुए हैं। इनका वाहन गधा है। कालरात्रि हमें सिखाती हैं कि हमें बुराई से डरना नहीं चाहिए और उसका सामना करना चाहिए। इनकी पूजा से भय और नकारात्मकता दूर होती है।
कथा – माँ दुर्गा का सातवाँ रूप कालरात्रि है, जो विनाशक शक्ति का प्रतीक हैं। ये काले रंग की हैं और इनके बाल बिखरे हुए हैं। ये गधे पर सवार हैं। इनकी पूजा से भय और नकारात्मकता दूर होती है।
मंत्र – ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नमः
महत्व – यह रूप बुराई और अंधकार का विनाश करता है। इनकी पूजा से भय और नकारात्मकता दूर होती है।
महागौरी – माँ दुर्गा के नौ रूपों की जानकारी –
माँ दुर्गा का आठवां रूप, शांति और सौंदर्य की प्रतीक हैं। ये श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और इनका वाहन वृषभ है। महागौरी हमें सिखाती हैं कि हमें हमेशा शांत और सुंदर रहना चाहिए। इनकी पूजा से मन को शांति और सुख मिलता है।
कथा – माँ दुर्गा का आठवाँ रूप महागौरी है, जो सौंदर्य और शांति का प्रतीक हैं। ये श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और इनका वाहन वृषभ है। इनकी पूजा से मन को शांति और सुख मिलता है।
मंत्र – ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्यै नमः
महत्व – यह रूप सौंदर्य और शांति प्रदान करता है। इनकी पूजा से मन को शांति और सुख मिलता है।
सिद्धिदात्री –
माँ दुर्गा का नौवां रूप, सिद्धि और समृद्धि की प्रतीक हैं। ये कमल के फूल पर विराजमान हैं और चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। सिद्धिदात्री हमें सिखाती हैं कि हमें हमेशा अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रयास करना चाहिए। इनकी पूजा से जीवन में सफलता और समृद्धि मिलती है।
कथा – माँ दुर्गा का नौवाँ रूप सिद्धिदात्री है, जो सिद्धि और समृद्धि का प्रतीक हैं। ये कमल के फूल पर विराजमान हैं और चार भुजाओं वाली हैं। इनकी पूजा से जीवन में सफलता और समृद्धि मिलती है।
मंत्र – ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्र्यै नम:
महत्व – यह रूप सिद्धि और समृद्धि प्रदान करता है। इनकी पूजा से जीवन में सफलता और समृद्धि मिलती है।
माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा विधि की जानकारी –
नवरात्रि के दौरान, भक्त माँ दुर्गा की पूजा विभिन्न तरीकों से करते हैं। कुछ लोग नौ दिनों तक उपवास रखते हैं, जबकि कुछ लोग पहले और आखिरी दिन उपवास रखते हैं। कुछ लोग घर में कलश स्थापित करते हैं और नौ दिनों तक अखंड ज्योति जलाते हैं।
माँ दुर्गा की पूजा में, भक्त फूल, फल, मिठाई और अन्य सामग्री अर्पित करते हैं। वे दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती और अन्य मंत्रों का जाप करते हैं। माँ दुर्गा की पूजा विधि सरल और भक्तिमय होती है। जैसे
- तैयारी – पूजा स्थल को साफ करें और एक चौकी स्थापित करें। माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। कलश स्थापना करें (यदि नवरात्रि में कर रहे हैं)। धूप, दीप, फूल, फल, मिठाई और अन्य पूजा सामग्री तैयार रखें।
- पूजा का आरंभ – गणेश जी का आह्वान करें। माँ दुर्गा का ध्यान करें और मंत्रों का जाप करें। माँ दुर्गा को फूल, फल और मिठाई अर्पित करें। फिर धूप और दीप जलाएं।
- आरती और पाठ – माँ दुर्गा की आरती गाएं। दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। फिर अपनी मनोकामनाएं माँ दुर्गा से कहें।
- समापन – माँ दुर्गा को प्रणाम करें फिर प्रसाद वितरित करें।
विशेष बातें – नवरात्रि में, माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। कुछ भक्त नौ दिनों तक उपवास रखते हैं। माँ दुर्गा को लाल रंग के फूल और वस्त्र विशेष रूप से प्रिय हैं। भक्ति और श्रद्धा के साथ पूजा करना महत्वपूर्ण है। माँ दुर्गा की पूजा से शक्ति, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
माँ दुर्गा के स्तुति मंत्र: महत्व और जानकारी
माँ दुर्गा हिंदू धर्म में शक्ति और सुरक्षा की प्रतीक हैं। उनकी पूजा और आराधना करने के लिए विभिन्न मंत्रों का उपयोग किया जाता है, जिनमें से स्तुति मंत्र विशेष महत्व रखते हैं। ये मंत्र माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त करने, उनकी शक्ति को आह्वान करने और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाने के लिए जपे जाते हैं। आइए, माँ दुर्गा के कुछ प्रमुख स्तुति मंत्रों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
दुर्गा स्तुति मंत्र –
मंत्र – या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थ – हे देवी! आप सभी प्राणियों में शक्ति के रूप में विद्यमान हैं। मैं आपको बार-बार नमन करता हूँ।
महत्व – यह मंत्र माँ दुर्गा की सर्वव्यापी शक्ति को समर्पित है। इसका जप करने से मन को शांति और आत्मविश्वास मिलता है।
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दुर्गा कवच मंत्र –
मंत्र – ॐ दुर्गायै नमः।
दुर्गा दुर्गार्तिशमनी दुर्गापद्विनिवारिणी।
दुर्गमच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी॥”
अर्थ – हे दुर्गा! आप सभी कष्टों को दूर करने वाली हैं। आप दुर्गम परिस्थितियों को समाप्त करती हैं और साधकों की रक्षा करती हैं।
महत्व – यह मंत्र सुरक्षा और साहस प्रदान करता है। इसका जप करने से नकारात्मक ऊर्जा और भय दूर होता है।
दुर्गा सप्तश्लोकी स्तुति –
मंत्र – प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥
अर्थ – माँ दुर्गा के नौ रूपों का वर्णन करता है, जिनमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री शामिल हैं।
महत्व – यह मंत्र माँ दुर्गा के नौ रूपों की स्तुति करता है। इसका जप करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि मिलती है।
दुर्गा मंत्र (सरल स्तुति) –
मंत्र – सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तु ते॥
अर्थ – हे माँ गौरी! आप सभी मंगलों की मंगलमयी हैं। आप सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाली हैं। मैं आपकी शरण में हूँ और आपको नमन करता हूँ।
महत्व – यह मंत्र माँ दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए जपा जाता है। इसका जप करने से मन को शांति और सुख मिलता है।
दुर्गा गायत्री मंत्र –
मंत्र – ॐ गिरिजायै विद्महे, शिवप्रियायै धीमहि।
तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्॥
अर्थ – हे माँ गिरिजा! हम आपको जानते हैं। हम आपकी, जो शिव की प्रिय हैं, ध्यान करते हैं। हमारी बुद्धि को प्रेरित करें। महत्व – यह मंत्र माँ दुर्गा की कृपा और ज्ञान प्राप्त करने के लिए जपा जाता है। इसका जप करने से मन को शांति और एकाग्रता मिलती है।
मंत्र जप के लिए सामान्य नियम –
- शुद्धता – मंत्र जप करने से पहले स्नान करके शुद्ध होना चाहिए।
- आसन – एक शांत और स्वच्छ स्थान पर आसन बिछाकर बैठें।
- माला – रुद्राक्ष या तुलसी की माला का उपयोग करें।
- संख्या – प्रत्येक मंत्र को 108 बार जपना शुभ माना जाता है
- ध्यान – मंत्र जप के दौरान माँ दुर्गा के रूप का ध्यान करें।
निष्कर्ष – माँ दुर्गा के नौ रूपों की जानकारी, उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने का सबसे सरल और प्रभावी तरीका हैं। इन मंत्रों का नियमित जप करने से जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि आती है। माँ दुर्गा की कृपा से सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।