मनुष्य में लिंग निर्धारण कैसे होता है ? ling निर्धारण के कारक एव गर्भधारण के बारे में

ling nirdharan kaise hota hai.

मनुष्य में लिंग निर्धारण कैसे होता है ? संतान के रूप मे लड़का या लड़की होना एक प्राकृतिक रूप से होता हैं । असल मे लिंग निर्धारण एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो मनुष्य के हाथ मे नहीं होता हैं । और ये प्रक्रिया कैसे सम्पन्न होती हैं इसके बारे मे कोई नही जानता है । लेकिन इसके बारे मे कुछ खुलासे जरूर किये है । लेकिन इसे रोकना या बदलना विज्ञान के हाथ मे नहीं है । यह एक जीवन विज्ञान का प्रश्न है ।

विज्ञान के अनुसार यह प्रक्रिया मनुष्य मे उपस्थित गुणसूत्रों पर आधारित होती हैं । यह गुण सूत्र पुरुष के शुक्राणुओ एव महिला के अंडानूओ मे मौजूद होते हैं । जिसे xy व xx के नाम से जाना जाता हैं । जब नर मादा युगमित होकर शुक्राणु सखलित करते हैं उस दौरान अंडानू से मिलन होने पर गर्भ ठहरने की प्रक्रिया शुरु होती हैं । उसके उपरांत लिंग निर्धारण का प्रॉक्सेस शुरु होता हैं । तो चलिए जानते हैं – लिंग निर्धारण क्या हैं ?

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लिंग निर्धारण क्या हैं –

जेंडर का निर्धारण एक जैविक प्रक्रिया है जिसमें गर्भ मे पलने वाला बच्चा लड़का या लड़की होगा का निर्धारण करती हैं । यह प्रक्रिया गर्भावस्था के दौरान होती है और इसमें जेनेटिक्स और हार्मोनल कारक शामिल होते हैं।

लिंग निर्धारण के दौरान, बच्चे के शरीर में दो प्रकार के गुणसूत्र होते हैं: X और Y। महिलाओं में दो X गुणसूत्र होते हैं, जबकि पुरुषों में एक X और एक Y गुणसूत्र होता है। लिंग निर्धारण की प्रक्रिया निम्नलिखित है:

  • गर्भाधान – गर्भाधान के दौरान, पुरुष के शुक्राणु और महिला के अंडे के मिलन से एक जाइगोट बनता है।
  • गुणसूत्रों का मिलन – जाइगोट में दो गुणसूत्र होते हैं, जो माता-पिता से विरासत में मिलते हैं।
  • लिंग निर्धारण – यदि जाइगोट में X और Y गुणसूत्र होते हैं, तो बच्चा पुरुष होगा। यदि जाइगोट में दो X गुणसूत्र होते हैं, तो बच्ची महिला होगी।
  • हार्मोनल प्रभाव – गर्भावस्था के दौरान, हार्मोनल प्रभाव बच्चे के लिंग को विकसित करने में मदद करते हैं।

परिणाम के रूप मे पुरुष (XY), महिला (XX) या इंटरसेक्स (XXY, XYY आदि) हो सकता हैं । थर्ड जेंडर की संभावना कम होती हैं । लेकिन कभी कभी इस लिंग का भी निर्माण हो सकता है ।

मनुष्य मे लिंग का निर्धारण कैसे होता हैं –

मनुष्य मे लिंग निर्धारण होना एक जैविक प्रक्रिया है जो गर्भा अवस्था के दौरान सम्पन्न होती है । विज्ञान के अनुसार लिंग का निर्धारण 6वे सप्ताह मे होता हैं । इस दौरान कुछ कारक होते हैं जो गर्भ मे पल रहे भूर्ण का लिंग निर्धारित करते हैं । जैसे जिन्स, हार्मोन्स आदि । जिनकी प्रकिया इस प्रकार होती हैं –

  • गर्भावस्था के 6वें सप्ताह में भ्रूण के विकास में लिंग निर्धारण होता है।
  • पुरुष भ्रूण में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन के प्रभाव से पुरुष जननांग विकसित होते हैं।
  • महिला भ्रूण में एस्ट्रोजन हार्मोन के प्रभाव से महिला जननांग विकसित होते हैं।
  •  जन्म के समय लिंग निर्धारण पूरा हो जाता है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि लिंग निर्धारण एक जटिल प्रक्रिया है और इसमें कई कारक शामिल होते हैं। आगे हम इन कारको के बारे में बात करने वाले है ।

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हार्मोन से मनुष्य में लिंग निर्धारण कैसे होता हैं –

लिंग निर्धारण में हार्मोन की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। हार्मोन वे रसायन होते हैं जो शरीर में विभिन्न कार्यों को नियंत्रित करते हैं। लिंग निर्धारण में हार्मोन की भूमिका के बारे में –

  1. टेस्टोस्टेरोन – यह एक पुरुष हार्मोन है जो पुरुषों में लिंग निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह हार्मोन पुरुषों के वृषण में उत्पादित होता है और पुरुषों के लिंग को विकसित करने में मदद करता है।
  2. एस्ट्रोजन – यह एक महिला हार्मोन है जो महिलाओं में लिंग निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह हार्मोन महिलाओं के अंडाशय में उत्पादित होता है और महिलाओं के लिंग को विकसित करने में मदद करता है।
  3. एण्ड्रोजन – यह भी एक पुरुष हार्मोन है जो पुरुषों में लिंग निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह हार्मोन पुरुषों के वृषण में उत्पादित होता है और पुरुषों के लिंग को विकसित करने में मदद करता है। लिंग निर्धारण में हार्मोन की भूमिका –
  4. लिंग निर्धारण के दौरान हार्मोन का स्तर – लिंग निर्धारण के दौरान हार्मोन का स्तर बहुत महत्वपूर्ण होता है। यदि हार्मोन का स्तर उचित नहीं होता है, तो लिंग निर्धारण में समस्या आ सकती है।
  5. हार्मोन का प्रभाव – हार्मोन का प्रभाव लिंग निर्धारण पर बहुत महत्वपूर्ण होता है। हार्मोन का प्रभाव लिंग के विकास पर पड़ता है और लिंग को विकसित करने में मदद करता है।
  6. हार्मोन की असंतुलन – हार्मोन की असंतुलन लिंग निर्धारण में समस्या पैदा कर सकती है। यदि हार्मोन की असंतुलन होती है, तो लिंग निर्धारण में समस्या आ सकती है।

इस प्रकार, लिंग निर्धारण में हार्मोन की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। हार्मोन का स्तर, प्रभाव और असंतुलन लिंग निर्धारण पर बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं।

जिन्स – से मनुष्य में लिंग निर्धारण कैसे होता हैं –

लिंग निर्धारण में जीन्स की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। जीन्स वे छोटे इकाइयाँ होती हैं जिनमें जेनेटिक जानकारी होती है और जो शरीर के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लिंग निर्धारण में जीन्स की भूमिका:

  •  जीन्स का प्रकार – लिंग निर्धारण में दो प्रकार के जीन्स शामिल होते हैं: ऑटोसोमल जीन्स और सेक्स क्रोमोसोमल जीन्स।
  • ऑटोसोमल जीन्स – ऑटोसोमल जीन्स शरीर के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन लिंग निर्धारण में सीधे शामिल नहीं होते हैं।
  • सेक्स क्रोमोसोमल जीन्स – यह क्रोमोसोमल जीन्स लिंग निर्धारण में सीधे शामिल होते हैं। ये जीन्स X और Y क्रोमोसोम पर स्थित होते हैं।
  • X क्रोमोसोम – X गुण सूत्र पर स्थित जीन्स महिलाओं में दो प्रतियों में होते हैं, जबकि पुरुषों में एक प्रति में होते हैं।
  • Y क्रोमोसोम – Y गुण सूत्र पर स्थित जीन्स पुरुषों में एक प्रति में होते हैं और महिलाओं में नहीं होते हैं।

गर्भाधान के दौरान, पुरुष के शुक्राणु और महिला के अंडे के मिलन से एक जाइगोट बनता है। वही जीन का मिलन होता हैं जो उनको माता पिता से उनको विरासत मे मिलते हैं । यदि जाइगोट में X और Y जीन्स होते हैं, तो बच्चा पुरुष होगा। यदि जाइगोट में दो X जीन्स होते हैं, तो बच्ची महिला होगी।

गुणसूत्र से मनुष्य में लिंग निर्धारण कैसे होता है –

लिंग निर्धारण में गुणसूत्रों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। गुणसूत्र वे छोटे इकाइयाँ होती हैं जिनमें जीनेटिक जानकारी होती है और जो शरीर के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लिंग निर्धारण में गुणसूत्रों की भूमिका:

  •  गुणसूत्रों का प्रकार – मानव शरीर में 23 जोड़ी गुणसूत्र होते हैं, जिनमें से एक जोड़ी लिंग गुणसूत्र होती है। लिंग गुणसूत्र X और Y होते हैं।
  • X गुणसूत्र – X गुणसूत्र महिलाओं में दो प्रतियों में होता है, जबकि पुरुषों में एक प्रति में होता है।
  • Y गुणसूत्र – यह पुरुषों में एक प्रति में होता है और महिलाओं में नहीं होता है।

गर्भ के दौरान शुक्राणु और अंडे के मिलन होता है। जब शुक्राणु के X या Y गुणसूत्र और अंडे के X गुणसूत्र के मिलन से लिंग निर्धारण होता है। जैसे XY या XX: यदि शुक्राणु के Y गुणसूत्र और अंडे के X गुणसूत्र के मिलन से बच्चे का लिंग पुरुष (XY) होगा, और यदि शुक्राणु के X गुणसूत्र और अंडे के X गुणसूत्र के मिलन से बच्चे का लिंग महिला (XX) होगा।

Ling निर्धारण कैसे होता है –

यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो कई प्रकार के तत्वों पर निर्भर करती हैं । जैसे हार्मोन, जीन एव उस समय की स्थितियां आदि । तो चलिए कारको के बारे में जानते है –

  • जीन लिंग निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पुरुषों में XY क्रोमोसोम होते हैं, जबकि महिलाओं में XX क्रोमोसोम होते हैं।
  •  हार्मोन्स भी लिंग निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन अधिक होता है, जबकि महिलाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन अधिक होता है।
  •  गर्भावस्था के दौरान भ्रूण के विकास में लिंग निर्धारण होता है।
  •  जननांग लिंग निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पुरुषों में पेनिस और वृषण होते हैं, जबकि महिलाओं में योनि और अंडाशय होते हैं।

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मानव में बच्चे का लिंग निर्धारण कैसे होता हैं –

मानव में बच्चे का लिंग निर्धारण गर्भावस्था के दौरान होता है, जब शुक्राणु और अंडे के मिलन से गर्भाधान होता है। लिंग निर्धारण में दो प्रमुख कारक होते हैं –

  1. शुक्राणु – पुरुष के शुक्राणु में X और Y गुणसूत्र होते हैं। यदि शुक्राणु में X गुणसूत्र होता है, तो बच्चा महिला होगा, और यदि शुक्राणु में Y गुणसूत्र होता है, तो बच्चा पुरुष होगा।
  2. अंडे – महिला के अंडे में हमेशा X गुणसूत्र होता है।
  3. जब शुक्राणु और अंडे के मिलन होता तब गर्भाधान होता है। शुक्राणु के X या Y गुणसूत्र और अंडे के X गुणसूत्र के मिलन से बच्चे का लिंग निर्धारित होता है।
  4.  यदि शुक्राणु के Y गुणसूत्र और अंडे के X गुणसूत्र के मिलन से बच्चे का लिंग पुरुष (XY) होगा, और यदि शुक्राणु के X गुणसूत्र और अंडे के X गुणसूत्र के मिलन से बच्चे का लिंग महिला (XX) होगा। इस प्रकार, बच्चे का लिंग निर्धारण गर्भावस्था के दौरान होता है, और यह शुक्राणु और अंडे के गुहोता  पर निर्भर करता है।

गर्भ का निर्धारण कैसे होता हैं –

गर्भाधा का प्रोसेस नर मादा के मिलन से शुरु होता है । उनके बाद कई चरण होते हैं जैसे –

  •  युग्मकों का मिलन – गर्भ का निर्धारण युग्मकों के मिलन से होता है, जिसमें पुरुष के शुक्राणु और महिला के अंडे शामिल होते हैं।
  • शुक्राणु की गुणवत्ता – शुक्राणु की गुणवत्ता गर्भ के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि शुक्राणु की गुणवत्ता खराब होती है, तो गर्भ नहीं ठहरता है।
  • अंडे की गुणवत्ता – अंडे की गुणवत्ता भी गर्भ के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि अंडे की गुणवत्ता खराब होती है, तो गर्भ नहीं ठहरता है।
  • गर्भाशय की स्थिति – गर्भाशय की स्थिति गर्भ के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि गर्भाशय में कोई समस्या होती है, तो गर्भ नहीं ठहरता है।
  • हार्मोनल संतुलन – हार्मोनल संतुलन गर्भ के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि हार्मोनल संतुलन खराब होता है, तो गर्भ नहीं ठहरता है।

गर्भ के निर्धारण की प्रक्रिया मे युग्मकों का मिलन गर्भ के निर्धारण की पहली चरण है। अगले चरण में शुक्राणु अंडे में प्रवेश करता है और अंडे को निषेचित करता है। शुक्राणु और अंडे के मिलन से जाइगोट का निर्माण होता है। जाइगोट विभाजित होकर भ्रूण में बदलता है। अंतिम चरण के रूप मे भ्रूण गर्भाशय में प्रवेश करता है और गर्भ का निर्धारण होता है।

निष्कर्ष – मनुष्य मे लिंग निर्धारण की प्रक्रिया गर्भाधान के दौरान होती है । यह एक बेहद जटिल प्रकिया है । इसे बदलना नामुमकिन है । और स्वत ही होती हैं । हा ये बात है कि लिंग का निर्धारण करीब 6 सप्ताह यानी गर्भाधान के पहले डेढ़ महीने मे सम्पन्न हो जाती हैं । इस दौरान यदि कोई गड़बड़ी होती हैं तो पेट मे पलने वाले शिशु को मुश्किल हो सकती हैं । LRseju

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